कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग चार (IV)}
(अरुण कुमार तिवारी)
1. ये घर है मेरा इसकी बुनियाद में,जस्बये वतन रहता है।
अब सर झुका के नहीं चलता है इस देश का मुस्तकबिल ,जब चलता है तो सर पे कफ़न रहता है।।
2. खुदा खड़ा था गली के मोड़ पे।
लोग उससे मस्जिद का पता पूंछ-पूंछ के जाते रहे ।।
3. तेरे जस्बात उस गली तक भी नहीं पहुंचे।
मेरे हालात जिस गली से, मीलों दूर चले आये हैं।।
4. मज्जिद में गये थे पाक़ होने के लिए।
ऐसा क्या था नमाज़ में जो भी निकला कातिल बन के निकला।।
5. कैसे हालात हो गए हैं,नया ज़ख्म पुराने को दबा देता है।
अजीब सियासत है कोई भी आये,सिर्फ दगा देता है।।
6.मेरा काम तुझे सच दिखने का था और रहेगा।
मै आइना हूँ सच दिखाता हूँ तस्वीर बनाना मेरा काम नहीं।।
7. ज़िन्दगी निकले तो कहीं से भी निकले।
रूह जब निकले तो जिगर से निकले।।
8. कभी हालात ने रुला दिया कभी जज़्बात ने रुला दिया।
महफ़िल में जब भी ज़िक्र तेरा हुआ,हमें हर बात ने रुला दिया।।
9. कुछ तो खास बात है उसकी अंगड़ाई में।
वो जब भी अंगड़ाई लेता है उस रात शहर नहीं सोता है।।
10. उसके हांथों का कश्कुल न देख।
न जाने कितने ताजों को वो ठोकर मार कर आया है।।
11. बीस दिन के प्यार के लिए,बीस सालों का दुलार भूल जाते हैं।
ऐसे लोग अंधेरों में फिर दीप नहीं जलाते हैं।।
12. बिछड़ने से पहले चलो, बाँट लेते हैं कुछ न कुछ।
तुम मेरे हिस्से की खुशियाँ ले जाओ,मै तुम्हारे हिस्से के ग़म लिए जाता हूँ।।
13. मेरे घर की बुनियाद अभी बहुत मजबूत है।
मेरे माँ बाप अभी इस घर में रहते है।।
14. कुछ खुशनसीब थे तू जिनके अन्दर रहता था।
कुछ बदनसीब थे जिन्हें तू खोज रहा था।।
15. तेरी रहमत से बहुत वाकिफ हूँ मैं।
तू अक्सर प्यासे को समुन्दर के पास छोड़ देता है।।
16. तू सीख रहा है जिससे उड़ने का हुनर।
वो परिंदा खुद पिंजरे से बाहर आज तक नहीं निकला है।।
17. दूर जाके भी न तू भूला जिसको।
वो तुझे आज भी याद करता है,तेरे जाने के बाद।।
18. पता न पूँछ मुझ से किसी और का।
बरसो से भटक रहा हूँ मैं खुद की तलाश में।।
19. इस दुनिया में यारों इतना गिरना भी अच्छा नहीं होता।
के जब उठने का वक्त आये तो खुद से आँख न मिला सको।।
20. कितना अजीब सक्श था वो सर पे ताज था फिर भी।
हर लाचार के आगे सर झुकाता चला गया,हर किसी को अपना बनाता चला गया।।
21. मैं उस मंजिल का राही हूँ,जो मंजिल तेरी भी है मेरी भी है।
थाम ले हाँथ मेरा,न डिगने दे मुझको,जरूरत तेरी भी है जरूरत मेरी भी है।।
धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी
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