ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था ......
" अरुण कुमार तिवारी "
ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था,
मैं उस कारवां में अकेला ही खड़ा था /
बहुत लोग आये बहुत साथ देने ,
मेरे ही मुकददर में कोई साथ न था //
ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था ......
हर एक आंसू बोला ,हर एक आह बोली ,
हर एक सांस की डोर सांसों ने तोली /
हर एक दर्द मुझसे ये कह के गया था ,
मेरे ग़म का साया ही मुझ से बड़ा था //
ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था ......
तू ही पास मेरे तू ही दूर मुझसे ,
तू ही तू बसी है मेरी धडकनों में /
मेरी सांस की डोर तुझ से बसी थी ,
मेरा हर फ़साना तुझ से बना था //
ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था ......
मैं चलता रहा बरसों बे कदम ही ,
मैं कहता रहा खुद से खुद की ही बातें /
मेरे हर तराने में तू ही बसी थी ,
मेरा हर फ़साना तुझ से बना था //
ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था ......
मैं चलते चलते यूं ही रूक गया था ,
मैं रूक रूक के यूं ही चल दिया था /
ज़हन में मेरे हर बार तू ही बसी थी ,
आइना जो देखा अक्स तेरा बना था //
ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था,
मैं उस कारवां में अकेला ही खड़ा था .....
अरुण कुमार तिवारी
बहुत अच्छा
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