कुछ मुक्तक कुछ शेर
(अरुण कुमार तिवारी)
40. तुझे अफसाने सुनाने की आदत है।
मैं दास्ताँ लिखता हूँ।।
1 इमान होता नहीं,और बेईमान भी हो जाते हैं।
अजीब दुनिया है कहते कुछ हैं,कुछ औरही कर के चले जातें हैं।।
2 बेच के आया है खुदा को मस्जिद में,
जो मुझ को काफ़िर कह रहा है।
3 उस को सुनना नहीं आया ,मै सुना नहीं पाया,
बात दिल की दिल में ही रह गई।
4 जिस रात की सुबह नहीं ये वो रात नहीं है।
जब तक आशा बाकि है,जिंदगी बर्बाद नहीं है।।
5 बिखेर दी माला फिर जपते जपते।
घूमके आगया उसी दर पे चलते चलते।।
6 कुछ तो खास था उसकी बातों में,
उसकी बातें कब्र तक साथ चली।
7 जपता नहीं माला उसकी,जाता नहीं दर पर उसके।
वो मुझ में रहता है मै उसमे रहता हूँ,बस इतना है नाता उससे।।
8 दिख रही थी सरकार की नियत,
आ रही थी चन्दन की खुसबू बदन से उसके।
वो बच्चा अभी छत पे ईंट चढ़ा के आया है।।
9 तन्हाई में सुनोगे,महफ़िल में भी याद आऊंगा,
मैं तो छुपा दर्द हूँ ठोकर लगी तो उभर आऊंगा।।
10 हाथ छोड़ के भी रिश्ते निभाये जाते हैं।
पकड़ के हाथ रिश्ते बचाना छोड़ो।।
11 कृषण तो आ ही जायेंगे द्रौपदी के लिए,कब तक रहोगे सर झुकाए पांडवों की तरह।
कब तक लगाते रहोगे दाव पर द्रौपदी कायरों की तरह।।
12 जब से डर से उनके सर झुकने लगे,
उनकी दुआओं का असर जाता रहा।
13 लम्हों कि गलतिओं की सज़ा जब कभी भी सदिओं ने यहाँ पाई है,
ये दुनिया बड़ी ज़ालिम नज़र आई है
14 मौत के साये में तमामउम्र जिंदगी चली,
फिर एक दिन मौत के साये से मिल जिंदगी चली।
15 कब तक कोसोगे किस्मत अपनी।
तकदीर लिखनी सीख लो।।
16 न जिंदगी में आ ही सके।
न दिल से जा ही सके।।
17 फिर खड़ा हूँ उस मोड़ पर आज भी मैं।
जहाँ छोड़ आये थे तुम मुझे किसी के लिये।।
18 गाँधी के बंदरों से सीखी हमने एक ही बात।
जब कोई झूठा गाँधी मिले तो मारो दो दो लात।।
19 न चाँद,न तारा,न सूरज,न समंदर अपनों के दिलों में रहूँ।
ऐसी तस्वीर बना दे भगवन,फिर से फ़कीर बना दे भगवन।।
20 भावनाओं में तैरने को कहा था।
आप खामखाँ भावनाओं में बहने लगे।।
21 आज फिर पिटारा खुलेगा,
आज फिर तमाशबीन इकठ्ठा होंगे,
आज फिर सांप निकलके हुजूम को नचाएगा।”
22 देख ली किस्मत की अपने कमाई,
जहाँ नौ मन तेल मिला वहां राधा न आई।
23 ये भारत की धरती है,जहाँ बंजर भी है।
वहां पर भी कभी,बुज़दिल नहीं पैदा किये।।
फिर कैसे यहाँ कुछ कायर आ गए।।
24 दलाल सारे सियासत करने लगे।
कोठे खुल गए तो अफ़सोस क्यूँ।।
25 हर वक्त बहादुरी नहीं है, अकडो और कट के गिर जाओ।
बहादुरी वो भी है ,की झुको बशर्ते धनुष बन जाओ।।
26 कौन कहता है हमें हीरे की परख है।
बीवी बच्चे साथ होते हैं माँ बाप गाँव में रोते हैं।।
27 वो बन्दुखे बनाता है इनाम लेके जाता है।
मैं खिलोने बनाता हूँ भूंखा सो जाता हूँ।।
28 ये मिटटी है मेरे भारत की,इतना जान लो यारों।
ये हाँथ पे लगे तो हाँथ को गन्दा नहीं करती।।
29 न वो काज़ी था,न माज़ी था,न फ़रियादी ही था यारों,
फिर उसके नाम का कलमा क्यूँ ज़माना पढता रहा यारों।
31 मेरे दर्द को जो समझ जाओगे
मुझ को अपने ही अन्दर पाओगे।।
32 बाप नशे में सोता रहा ,बच्चा रोता रहा ,
मरी हुई माँ की छाती कब तक दूध पिलाती उसको।
33 हे राम न दे आंखे उनको।
जिनको औरों के गम पे रोना नहीं आता।।
34 फिर बार बार दोस्त दोस्त कहने की जरूरत नहीं पड़ी।
जो एक बार अपने दिल से मैंने दुश्मनी निकाल दी।।
35 कौन कहता है बढती उम्र कम नहीं होती।
एक बार माँ की गोद में सर रख कर तो देखिया।।
36 दीवार है,बहार है और मजार है।
लाश पे आज रोने को कातिलों की क़तार है।।
37 प्यार करने की कोई वजह नहीं,इसलिय नफरत करूँ मैं।
यारों इतना भी बेगैरत नहीं हूँ मैं।।
38 उस के सोने से मिल जाता है,मेरी आँखों को आराम।
जिसके सोने के लिये रोज़ जागता हुं मैं।।
39 भाग रहा था ,जो अपने ही साये से।
गिरा जब थक के,अपने ही सायेमें जा मिला।।
धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी
No comments:
Post a Comment