बेटी को विदा करके बाबुल
(अरुण कुमार तिवारी )
वो पूँछते हैं हम शेर क्यूँ लिखा करते हैं।
अरे दर्द आँखों से न छलक जाये,इस लिया शेर लिखते हैं।।
बेटी को विदा करके बाबुल,
गलिओं में ही रोया करते हैं।
बरसों से सींची जो फुलवारी,
लम्हों में ही खोया करते हैं।।
जब चलने के काबिल वो न थी,
गोदी का सहारा देते हैं।
जब चलने के काबिल हो वो गई,
ऊँगली का सहारा देते हैं।।
लो देखो के आंखे भर ही गई,
किस्मत के निर्दय वारों पे।
के आज वही बाबुल फिर से,
कांधे सहारा देते हैं।।
धन्यवाद्
(अरुण कुमार तिवारी )
BAHUT KHUB LIKHA HAI SIR
ReplyDelete/ ANKHO ME AANSHU AA GAYE !!