जब बुराई से बाज़ नहीं आते हैं लोग
जब बुराई से बाज़ नहीं आते हैं लोग,
फिर क्यूँ चेहरे को अपने छुपाते हैं लोग।
गलतियाँ करके क्यूँ पछताते हैं लोग,
जब बुराई से बाज़ नहीं आते हैं लोग।।
पाप करके भी देखो मुस्कुराते हैं लोग,
अपने अपनों को गैर क्यूँ बनाते हैं लोग।
हवा जिस ऒर की बहे बह जाते हैं लोग,
झूटे वादे तो फिर भी किये जाते हैं लोग।।
अपनों के दर्द का सबब नहीं जानते हैं लोग,
गैरों के दर्द पे भी मुस्कराते हैं लोग।
इस से बढ़ के क्या ढाएंगे सितम यहाँ लोग,
भूंखे बच्चे की रोटी छीन जाते हैं लोग।।
धन्यवाद
अरुण कुमार तिवारी
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