कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग दो(II)}
(अरुण कुमार तिवारी)
31. मैं जगा रहा हूँ,तुझे सोने की आदत है।
तुझे तेरी नींद मुबारख,मुझे धरा का क़र्ज़ अदा करना है।
1. ये शहर मर जाता है हर मौत से पहले।
इस शहर में अब मौत का चर्चा नहीं होता।।
2. बदल दोगे दुनिया को एक दिन।
शर्त बस इतनी है पहले खुद को बदलना सीखो।।
3. न आज़मा तू फिर से मुझे।
आज आँखों में मेरी खून उतर आया है।।
4. तुम्हारे हर सवाल का जवाब दे सकता हूँ अभी।
पर क्या करूँ तुम्हारी हद तक गिर नहीं पाता कभी।।
5. मुझको बेईमान कह के पत्थर मारने वालों।
क्या करोगे कल जब ज़माना मेरे ईमान की कसम खायेगा।।
6. बहुत दूर नहीं बस अपने ही गाँव चले आओं परिंदों।
भूंख किताबों में नहीं,आज भी बिन चादर के सोती है यहाँ।।
7. मिट गईं जब हाथों की लकीरें।
तकदीरें हाथों से सवरना आ गया मुझको।।
8. फिर आज गुलाब महंगा हो जायेगा।
कल फिर कांटे पैरों में चुभ जायेंगे।।
9. दुश्मनी करना फितरत नहीं मेरी,फिर भी दुश्मन रखता हूँ मैं।
क़त्ल करना आदत नहीं मेरी,फिर भी हाथों में कलम रखता हूँ मैं।।
10. सही वक्त आएगा तब निकाल लेना।
गुस्से को बेवक्त जाया नहीं किया करते।।
11. आदत होगई उसे हर दर पे सर झुकाने की।
उसका सर अब सर कहने के काबिल न रहा।।
12. नापके फिर तौलके ,फिर नापके फिर तौलके।
जब भी बोलना पड़े तो ऐसे ही बोलिए।।
13. धोखा दिए बगैर भी जा सकता था तू।
धोखा देके क्या तुझे खुदा मिल गया।।
14. बुनियाद जरूरी है हर मकाँ के लिए।
दीवारों से आशियन खड़े नहीं होते।।
15. जिन्हें नाज़ था अपने तख्तो ताज पे,कब्र में आज अकेले पड़े हैं वो।
उम्र गुजरी जिनकी दिया बनने में ,आज दिलों में रहते हैं वो।।
16. नशे में हूँ पर मुझे शराबी न समझ।
दिल में रहता है वो मेरे मुझे सन्यासी न समझ।।
17. गिन के साल जिन्दगी की लम्बाई न नाप।
जिन्दगी लम्हों की भी सदिओं सी जी जा सकती है।।
18. जानता हूँ जगाने चलां हूँ मुर्दों को,पर ये जगे तो भूत बन जायेंगे।
बेगैरत सरकार को रात दिन जगायेंगे।।
19. ठण्ड कुछ कम लगने लगी उसी पल ,
जब देखा एक माँ और उसके बच्चे को बिना स्वेटर के मजदूरी करते हुए।
20. सियासतदान गुनेह्गारों के कद्रदान होने लगे।
जनता अब गुनाहगार लगने लगी।।
21. सुख दुःख ,गम ख़ुशी,पाना खोना सब ऒस की बूंदों से लगने लगेगे।
जब ओढ़ चदरिया जायेगा।।
22. रूक गए हाँथ जब भी मैंने कलम उठाई अपनी लकीर बड़ी करने के लिए।
तेरी मासूमि से खिंची लकीर नज़र आ गई मुझको।।
23. साल बदलता है हालात नहीं बदलते।
सरकार बदलती है हुक्मरान नहीं बदलते।।
24. गम ख़ुशी,पाना खोना,नफा नुकसान सब ऒस की बूंदों से लगने लगे।
एक बार खुद को ढूँढने जो निकला मै शिद्द्त से ।।
25. क़त्लग़ाह बन गया है ये शहर।
अब मौत यहाँ हादसा नहीं होती।।
26. दिल का दर्द आँखों का फ़साना,न मै समझा पाया न तूने ही जाना।
फिर रात भर चलेगा आज,मेरे गम का तराना।।
27. तेरी आँखों का दर्द मेरे दिल में दिख गया होता।
अगर तूने मुझे अपना समझा होता।।
28. क्या क्या याद करूँ ,क्या क्या भूलूँ मैं।
अच्छा है चुप हो जाऊं,फिर सब कुछ सह लूं मैं।।
29. तमाम उम्र वो लड़ता रहा तुझे रुसवाईयों से बचाने के लिए।
जिसे रुसवा करके तू जशन मना रहा है।।
30. अजीब शहर है ये, अजीब लोग हैं यहाँ।
इस शहर में अक्सर साँस लेते मुर्दे मिल जाते हैं हमें।।
(अरुण कुमार तिवारी)
31. मैं जगा रहा हूँ,तुझे सोने की आदत है।
तुझे तेरी नींद मुबारख,मुझे धरा का क़र्ज़ अदा करना है।
1. ये शहर मर जाता है हर मौत से पहले।
इस शहर में अब मौत का चर्चा नहीं होता।।
2. बदल दोगे दुनिया को एक दिन।
शर्त बस इतनी है पहले खुद को बदलना सीखो।।
3. न आज़मा तू फिर से मुझे।
आज आँखों में मेरी खून उतर आया है।।
4. तुम्हारे हर सवाल का जवाब दे सकता हूँ अभी।
पर क्या करूँ तुम्हारी हद तक गिर नहीं पाता कभी।।
5. मुझको बेईमान कह के पत्थर मारने वालों।
क्या करोगे कल जब ज़माना मेरे ईमान की कसम खायेगा।।
6. बहुत दूर नहीं बस अपने ही गाँव चले आओं परिंदों।
भूंख किताबों में नहीं,आज भी बिन चादर के सोती है यहाँ।।
7. मिट गईं जब हाथों की लकीरें।
तकदीरें हाथों से सवरना आ गया मुझको।।
8. फिर आज गुलाब महंगा हो जायेगा।
कल फिर कांटे पैरों में चुभ जायेंगे।।
9. दुश्मनी करना फितरत नहीं मेरी,फिर भी दुश्मन रखता हूँ मैं।
क़त्ल करना आदत नहीं मेरी,फिर भी हाथों में कलम रखता हूँ मैं।।
10. सही वक्त आएगा तब निकाल लेना।
गुस्से को बेवक्त जाया नहीं किया करते।।
11. आदत होगई उसे हर दर पे सर झुकाने की।
उसका सर अब सर कहने के काबिल न रहा।।
12. नापके फिर तौलके ,फिर नापके फिर तौलके।
जब भी बोलना पड़े तो ऐसे ही बोलिए।।
13. धोखा दिए बगैर भी जा सकता था तू।
धोखा देके क्या तुझे खुदा मिल गया।।
14. बुनियाद जरूरी है हर मकाँ के लिए।
दीवारों से आशियन खड़े नहीं होते।।
15. जिन्हें नाज़ था अपने तख्तो ताज पे,कब्र में आज अकेले पड़े हैं वो।
उम्र गुजरी जिनकी दिया बनने में ,आज दिलों में रहते हैं वो।।
16. नशे में हूँ पर मुझे शराबी न समझ।
दिल में रहता है वो मेरे मुझे सन्यासी न समझ।।
17. गिन के साल जिन्दगी की लम्बाई न नाप।
जिन्दगी लम्हों की भी सदिओं सी जी जा सकती है।।
18. जानता हूँ जगाने चलां हूँ मुर्दों को,पर ये जगे तो भूत बन जायेंगे।
बेगैरत सरकार को रात दिन जगायेंगे।।
19. ठण्ड कुछ कम लगने लगी उसी पल ,
जब देखा एक माँ और उसके बच्चे को बिना स्वेटर के मजदूरी करते हुए।
20. सियासतदान गुनेह्गारों के कद्रदान होने लगे।
जनता अब गुनाहगार लगने लगी।।
21. सुख दुःख ,गम ख़ुशी,पाना खोना सब ऒस की बूंदों से लगने लगेगे।
जब ओढ़ चदरिया जायेगा।।
22. रूक गए हाँथ जब भी मैंने कलम उठाई अपनी लकीर बड़ी करने के लिए।
तेरी मासूमि से खिंची लकीर नज़र आ गई मुझको।।
23. साल बदलता है हालात नहीं बदलते।
सरकार बदलती है हुक्मरान नहीं बदलते।।
24. गम ख़ुशी,पाना खोना,नफा नुकसान सब ऒस की बूंदों से लगने लगे।
एक बार खुद को ढूँढने जो निकला मै शिद्द्त से ।।
25. क़त्लग़ाह बन गया है ये शहर।
अब मौत यहाँ हादसा नहीं होती।।
26. दिल का दर्द आँखों का फ़साना,न मै समझा पाया न तूने ही जाना।
फिर रात भर चलेगा आज,मेरे गम का तराना।।
27. तेरी आँखों का दर्द मेरे दिल में दिख गया होता।
अगर तूने मुझे अपना समझा होता।।
28. क्या क्या याद करूँ ,क्या क्या भूलूँ मैं।
अच्छा है चुप हो जाऊं,फिर सब कुछ सह लूं मैं।।
29. तमाम उम्र वो लड़ता रहा तुझे रुसवाईयों से बचाने के लिए।
जिसे रुसवा करके तू जशन मना रहा है।।
इस शहर में अक्सर साँस लेते मुर्दे मिल जाते हैं हमें।।
धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी
बहुत सुंदर हैं
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