हम महज़ एक कतऱा हैं सागर तो और हैं।।
१. समुन्दर का जल उस पल मीठा जरूर हो जाता होगा।
जिस पल लाती है नदी उसमे किसी शहीदे वतन का पैगाम।।
२. चन्दन की महक आने लगी है इन्न बासी फूलों से।
ये मज़ार शहीद की है किसी शहनशाह या खुदा की नहीं।।
३. जियो तो इस कदर कि,मौत को फक्र हो तुम पर ।
मरो तो इस शान से कि जिंदगी को भी अफसोस न होने पाए।।
४. हम लफ़्ज़ों के हेर फेर में जिन्दगी को बयां न कर पाए।
वो आये सादगी से ख़ामोशी से जिनगी को बयां कर चले।।
५. हर तरफ एक शोक सा छाया है।
इंसान इंसानियत से कितना दूर चला आया है।।
६. कुछ फलसफे होते हैं,कुछ फ़साने होते हैं।
तनहा रहने के सबके अपने-अपने बहाने होते हैं ।।
७. पैस को बाँटने वालों,किस्मत को भी क्या बाँट पाओगे।
ज़मीन का मोल तो दे दोगे,आसमान का मोल क्या लगाओगे।।
८. तू सर की कीमत दर से लगा,मैं दर की कीमत सर से लगाता हूँ।
जा झुका हर दर पे सर अपना,मै दर देख कर सर झुकता हूँ।।
९. राम यूँही राम नहीं कहलाये,स्वाद किसी ने राजभोग़ का पुछा।
आँख में नीर लिए सबरी के बेर का गुण गान करने लगे।।
१०. कुछ तसवीरें आज भी अहसास करा देती है।
बहुत चले हैं पर बहुत चलना है अभी सहर के लिए।।
११. कितना भी उम्र् दराज़ हो जाये इस कौम का आदमी।
मोहम्मद बड़ा होने नहीं देता,मौलवी इंसान बन्ने नहीं देगा।।
१२. बस इसी अहसास ने उस गरीब बाप को बूढ़ा होने न दिया।
घर में खाने को कुछ नहीं,जवान बेटी कुंवारी बैठी है।।
१३. जब तेरे वजूद को मिटाना उसकी मजबूरी बन जाये।
तो जान लेना तमाम उम्र तू उसूलों पे जिया।।
१४. सारी रात चाँद लोरी सुनाएगा चांदनी सहलाएगी तुझे।
तडपती धुप में किसि मजबूर के लिए नंगे पैर चलके तो देख।।
१५. कबतक एक ही सवाल पूछते रहोगे,जवाब एक ही देता रहूँगा।
बहुत दूर नहीं है दिन,सवाल बदल जाएंगे तेरे,मेरा भी जवाब तू ही दे रहा होगा।।
१६. कर रहे गुरबानी का अनादर ये दो सरदार।
उठ जाग वे जठठा माफ़ न कर इनको इस बार।।
१७. साधू की गति साधू वाली,गति नीच की नीच।
हो उपवन या हो जीवन सही खाद,स्वच्छ नीर से सींच।।
१८. बदलाव नियम है श्रृष्टि का।
जो न बदले वो जड़ हो जाता है।।
१९. अपनी मंज़िल खुद चुनो,अपना रास्ता खुद ही तलाश करो।
ये ज़िन्दगी नहीं मिलेगी दोबारा,लकीर के फ़कीर बनके इसे न बर्बाद करो।।
२०. कोई आम आदमी का,कोई आम आदमी को मज़ाक बना रहा है यहाँ।
अपना घर सवारने के लिए कितना करतब किया जा रहा है यहाँ ।।
धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी