अरुण कुमार तिवारी
21.दुशमन भी बहुत,आशायें भी बहुत,
सामने समर भयंकर है,आगे राह कठिन होगी।
ध्रिड संकल्प लिए चलना,
निश्चित ही तेरी विजय होगी।।
1 .जिंदा हो सो जगा रहाँ हूँ तुम्हे,परेशां हो तो बस एक बार।
अपने मरने का सबूत दे देना नहीं आऊंगा फिर जगाने के लिए।।
2 .दीवारे मज्जिद पर लिखा था "काफ़िर का आना बंद है"।
और फिर खुदा अपना रास्ता बदल के चला गया यारों।।
3 .बहुत दिन तक नहीं चलेगी सियासत जान लो मौलवी।
कभी तो टोपियों के नीचे दिमाग तिलमिला के जाग जायेगा।।
4 .रोटी रोटी को तरस रहा आदमी,रोटी रोटी को फैंके हुए आदमी।।
जिन्दा है फिर भी मर चूका आदमी,मरके भी तो जिंदा रहा आदमी।।
5 .कभी गर्म हवाओं ने रोका,कभी शर्द फ़िज़ाओं ने रोका।
हार गए जब ये सब तो,फिर तेरी निगाहों ने रोका।।
6 .मौत के डर से सर बचाने की वो कीमत अदा करनी पड़ी।
हर गली,हर मोड़,हर राह,हर दर्र पे सर झुकाना पड़ा है यारों।।
7 .फिर खो गए अरमान मेरे मेरी ही परछाईयों में।
फिर ढूँढने निकला हूँ खुद को खुद के वजूद में ।।
8 .खुद को देखा नहीं महसूस किया जाता है।
मै को मै आज़ाद किया जाता है।।
9 .हर एक सर की कुछ न कुछ कीमत लगाई थी उसने।
इस तरह से दुश्मनों की वफादारी पाई थी उसने।।
10.जहान में जब कभी भी दर्द बयाँ करता है दर्द को।
दर्द फिर खुद दर्द की कहानी बयां कर देता है यारों ।।
11.एक दो दिन की बात नहीं उम्र गुज़र जाती है।
मकान को घर,आदमी को इंसान बनाने में।।
12.तुरक न छोड़े तुरकई,हिन्दू छोड़ चुका अपनी पहचान ।
बहुत दिनों की बात नहीं,जब मिटेगा तेरा नामोंनिशान।।
13.आपका व्यव्हार गवाही देता है,आपके आम आदमी होने की।
टोपियाँ पहन के,हुलिया बदल के कोई आम आदमी नहीं बनता।।
14.बेहूदा बातें घूमती रहती हैं बाज़ारों में।
अच्छी बातों के कदरदान नहीं मिलते बाज़ारों में।।
15.मांगता रहा ताउम्र वो औरों के लिए ही यारों।
उसका दिल देखो कटोरा न देखो उसका यारों।।
16.कुछ तो बदला है ज़माने की रुसवाइयों ने।
मै लिखता कुछ और हूँ तू समझता कुछ और है।।
17.ये जिंदगी है,कोई खेल नहीं बस इतना जान लो यारों।
हर मंजिल बस एक पड़ाव है दूसरी मंजिल का यहाँ पर।।
18.न पूँछ मुझसे दर्द छालों में है कितना।
मंज़िल पे पहुँच के छाले आवाज़ नहीं करते।।
19.एक अनजानी अनदेखी ख़ुशी की तलाश में।
तमाम उम्र काट दी एक अजनबी की तलाश में।।
20.अपने संस्कारों से हटने की कीमत चुकाने लगे हैं लोग।
जिल्द से किताब,चेहरे से इंसान की पहचान बताने लगे हैं लोग।।
धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी
बहुत सुदर कविता
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteलिखते रहिये
निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।
ReplyDeleteबिन निज भाषा-ज्ञान के मिटत न हिय को सूल॥
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
Waah kya baat hai Arun ji kamal kar diya aapne.
ReplyDeleteBahut hi sundar kavita.
bahut bahut badia ,likhte rahiye
ReplyDeleteकमाल की कलम चलती है आपकी,संवेदनशील,भावापूर्ण अभिव्यक्ति.......प्रसंशा के पात्र हैं आप...बहुत अच्छा लगा.....:)
ReplyDeleteशानदार और जानदार। अतुलनीय।
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