21 . सच बोलता है वो,करके पीठ सच कि ओर।
और ये भी चाहता है,भरोसा करुँ उस पे मैं।।
1 . सियासत भी अजीब वहशी खेल है यारों।
किसी को बदज़ुबां कर देती है, किसी को बेज़ुबां।।
2 . बेवजह धर्म को बदनाम न कर,धर्म नहीं डुबोता सियासत को।
किसीकी हटधर्मी डुबाती है,किसीकी बेधर्मी डुबाती है।।
3 . मौत तो मौत,इक दिन जिंदगी भी छोड़ देगी जिस्म को।
खूबसूरती अंदर कि दोनों जहाँ में तेरे ढिकाने का पता बताती है।।
4 . तू चाह के भी समझा उसे नहीं पायेगा।
तू दिल से बोलता है,वो दिमाग से सुनता है बातें।।
5 . बहुत अलग है दुनिया तेरी दुनिया से मेरी।
एक मेरी दुनिया है जिसमे तू ही तू है,एक तेरी है जिसमे तू ही तू है।।
6 . सच है के आँखों में आंसू लेके ज़िंदगी नहीं चलती।
पर आँखों का पानी मर जाये तो भी तो ज़िंदगी बेमानी हो जायेगी।।
7 . कहने से पहले समझ जाती है वो सब बातें।
उस्से मोहब्बत नहीं करता तो और क्या करता।।
8 . क्या वक्त आ गया है,आस्तीन के सांप बताने लगे हैं हमें।
वफ़ा कैसे निभाई और बेवफाई क्या होती है यारों।।
9 . शहर यूं ही खामोश नहीं हो गया है यारों।
जख्म बहुत गहरा दिया है हुक्मरानों ने इसको।।
10 . जिन्दगी मिलती है एक बार,मुसाफिर पडाव को मंजिल न बना।
बेख़ौफ़ ले जा नैया समुन्दर में,डर के नैया का घर साहिल न बना।।
11 . हज़ारों फ़रिश्ते लड़ रहे है चूमने को उँगलियाँ उसकी।
वो भूंखी बच्ची,बीमार माँ को अपनी रोटी खिलाके फिर काम पे आई है।।
12 . पंडित न धुत्कार उसको,उसके छूने से बढ़ जायेगी रौनक तेरे मंदिर कि।
माँ कि रात कि एक रोटी के लिए वो दिन भर फूल चुनती है।।
13 . सफ़र खुद दिखा देगा अपने परायों का चेहरा।
किसी अपने चेहरे के इंतज़ार में ज़िंदगी बर्बाद न कर।।
14 . उन्हें गुरुर है कि वो काटने का हुनर रखते हैं।
वो जानते ही नहीं हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं।।
15 . नाखुदा कुछ इस तरह लड़ता रहा उम्र भर लहरों से।
कि जब वो समुन्दर में नहीं आता लहरें उदास होती हैं।।
16 . नैया तू पतवार भी तू है,मुसाफिर तू नाखुदा भी तू है।
थाम के चल सच्चाई कि डगर,इबादत तू खुदा भी तू है।।
17 . वतन के नौजवां कभी शिद्दत से देखो आसमां कि तरफ।
आज़ाद भगत बोस तुम्हारी बुज़दिली पे रोते हैं।।
18 . सुन्ना नया इतिहास है ,पढ़ना नया इतिहास है,वक्त आ गया है ,जाग ऐ वीर तू ।
थाम ले सच्चाई कि मशाल ,बनाना तुझे नया इतिहास है।।
19 . धार दो तलवार को,काटने हैं इसबार कई धड यारों।
वक्त फैसले का आ रहा है,इस बार रण प्रचंड होगा।।
20 . टोपीओं में कुछ तो खाश धागा लगा है यारों।
जो भी पहनता है गद्दार-ए-वतन हो जाता है।।
धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी
बहुत सुंदर प्रयास है..जारी रखे लिखना!
ReplyDeleteExceptional work Arunji. Keep it up. :)
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