कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग अष्टदश (XVIII)}
21. जब भूल जाना फितरत हो जाये ज़माने कि।
याद दिलाना कर्त्तव्य हो जाता है कलम का मेरी।।
1 . मोहब्बत भी दिन कि मोहताज होने लगी।
जान के हीर राँझा ,सोनी महिवाल कि रूह कब्र में रोने लगीं।।
2 . जब से बाँध दिया एक दिन को मोहब्बत के नाम से ।
वहशियत घूमने लगी बाज़ार में ओढ़े नकाब चाहत के ।।
3 . हो कितनी भी तेज़,बारिश आंसू छुपा नहीं सकती।
वहशियत एक दिन की,तोहफे तो ला सकती है मोहब्बत ला नहीं सकती।।
4 . हिन्दी के "फूलों" का,अंग्रेजी के "फूलों" के हांथों बरबाद होने का दिन आज है।
चलो कांधा तो हीर को रांझे को उनकी मैय्यत का दिन आज है।।
5 . बूढी माँ कि दवाई का पैसा गुलाब वाले को दे आया।
तहजीब को तिलांजलि दे आज का बेटा कहाँ से निकला कहाँ पर चला आया।।
6 . दरवाज़ा बंद कर,सीने से लगाये गुलाब,बेटी सो गई।
माँ कि जली उँगलियाँ आज फिर दवाई को तरसती रही।।
7 . राम के पास सूर्पनखा बन के जब भी जाइयेगा।
नाक से अपनी गलती कि कीमत चुकाइएगा।।
8 . फ़कीर कि मज़ार,और इतनी ऊँची दीवार।
परेशां होके रूह कब्र छोड़ कर चली गई।।
9 . साफ़ रास्तों पे जब तेजी से चलना,तो रुकना एक पल जरूर।
कुछ ऐसे लोग भी होंगे,हाथ के छाले जिनके पक गए होंगे।।
10. किसने कहा जब कोई साथ हो तभी प्यार देता है।
हो चाँद के पार भी तो क्या माँ का आँचल हर ख़ुशी वार देता है।।
11. बहुत बोलती हैं आँखे तेरी।
जो भी मिलता है,बहुत देर तक सुनता है बातें इनकी।।
12. दिल कि गहराई में जाके देखा,देखा दुआओं कि ऊंचाई में भी जाकर।
वो हो गहराई,या हो ऊंचाई दोनों जगह तन्हाई है आया समझ में अब जाकर।।
13. कुछ इस तरह बनाया मज़ाक उसने मेरी मुफलिसी का यार।
सोना तो दे दिया,मगर कटोरे कि शक्ल का ।।
14. बड़ी गिरगिटाई से वो सियासत में चला ।
परदे मोटे लगाये और कांच के मकान में रहा।।
15. सर झुकाते नहीं लहराते तिरंगे के सामने।
और एक सफ़ेद साड़ी है,जिसके ऊपर रखे सर पे इनकी नज़र जाती ही नही।।
16. राजनीति "पुराण" होनी थी,हिन्द में यारों।
बना के कुरान,जिल्द कुछ और ही चढ़ा दी गई यारों।।
17. अब कुछ भी बिकने का मातम न मनाइये शहर में।
शहरे सियासत में ज़मीर पहले बिकता है,आदमी बिकता है बाद में।।
18. गवाह है इतिहास जब भी हुई कमज़ोर भुजाएं वीर सपूत की।
नंगा नाच खेला नक्सली,आताताईयों ने रुक न पाई धारा माँ भारती के पीर की।।
19. कुछ काम भुजाओं को भी सौंप दे ऐ वीर तू।
कुछ नाशुक्रे हैं शहर ए हिंदुस्तान में,जिन्हे समझ में नहीं आती बोली हिंदुस्तान की।।
20. चरखा टोपी बन्दर सब हो गये बर्बाद।
गांधी नाम मिट गया जब दिया इंदिरा का घर करने को आबाद।।
धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी
वाह!
ReplyDeleteबहोत अच्छे.!!
ReplyDeleteइनमें से काफी Valentine's को लागू होते है। ;-)