Sunday, August 11, 2013

कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग पांच (V)}


कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग पांच (V)}
अरुण कुमार तिवारी 

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23. हाँथ में तलवार उठाने का हुनर क्या छोड़ा।
     "बीच वालों" की जमात सा हाल कर दिया ज़माने ने।।

1. मुश्किल दौर में से वो शेर बन के निकला।
    उसे ज़माना पलकों पे न बिठाता,तो और क्या करता।।

2. चोट लगी है दिल पे उसको, इतना तो है यारों।
     पर जितना चिल्ला रहा है, उतना ज़ख़्मी नहीं है यारों।।

3. अगर ज़िद पे आ जाये तो दरिया का मुह मोड़ सकता है आदमी ।
     इतना कमज़ोर है की आंसूओं में अक्सर बह जाता है इन्सान ।।

4. कुछ छुपा था धुंद में,कुछ छुपा था राख में।
    धुंद तेरी शहादत छुपा रही थी,राख जवानी तेरी।।

5. चूडिया बहुत बिक रही हैं बाज़ारों में।
     लगता है कोई मंदिर टूटा है अभी।।

6. बस यही इल्तजा है मेरी लाशें न गिनो।
    गिनो तो सर गिनो जो कटने को तैयार हैं माँ के वास्ते।।

7. या तो सच जानिए और उसके साथ हो लीजीए।
    या तो फिर झूठ को चाट के उसके सौदागर हो जाइये।।

8.   दे रहा हूँ तुझे दिल अपना।
      जीतेजी तुझे मरने नहीं दूंगा।।

9    आजकल बाज़ारे नफरत गर्म है। 
      लगता है मौसमे चुनाव नज़दीक है।।

10. इमान छोटे लेके,इन्सान बड़े नहीं बनते।
       देना पड़ता है इम्तेहान हर मोड़ पर,
       इतनी आसानी से लॊग महान नहीं बनते।। 

11. बदल गए हैं माप दंड इज्ज़त के कभी सर की पगड़ी बताती थी।
       आज सर पे रखा इनाम कीमत बताता है तेरी।।   

12. तकलीफ  ये नहीं था कि क्यूँ रोया मैं । 
      दर्द था ईमानदारी से पोंछे नहीं अपनों ने आंसू मेरे ।।

13. फिर नोट बंट रहे है फिर चूडियाँ बिक रही हैं सियासत के गलियारों में।
       लगता है शरहद पे कोई लाल शहीद हुआ है यारों।।

14. कमबख्त शहर भी कितना नासुकरा है।
      जब भी इबादत "इन्कलाब" देखता है,वहशियत "इश्क" में डूब जाता है यारों।।

15. मुकम्मल जहाँ पाने को बस फैलानी थी बाहें अपनी।
      ताउम्र इंतजार करते रहे सहारे किसी और के।। 

16. अंतर तो है उसकी और मेरी इबाददत का।
      मेरी दिल में ,उसके दिमाग में खुदा रहता है।।

17. बदल के मुझको नफरत करना चाहते हो तुम।
      बदल के मै तो मोहब्बत भी नहीं करता यारों ।।

18. वाह री किस्मत दरोदीवार बनति जिनके खून पसीने से।
      वही बुज़ुर्ग अक्सर, मर जाते हैं घर के बहार ठंडी से सिकुड़ के।।

19. ये सियासी लोग हैं यारों,मोल लगा देते हैं उस सर का भी।
      जिसके दर पे झुकाते है अक्सर सर अपना।।

20. जिस रात शैतान मेरे दिल से हिज्र कर गया।
      उस रात खुदा मेरे लिए हज पे चला गया।।

21. आप जरूर मांगिये जिन्दगी से मोहलत।
       जिन्दगी जब आप से जीने का मतलब पूंछे ईमानदारी दिखा देना हुज़ूर।।

22. आइना देख के चलना सीख लीजिये।
       तकलीफ तो होगी ,शर्मिंदगी नहीं होगी।।

धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी 

5 comments:

  1. Nice Very Nice I like it Very Much !!! Bahut hi Umda Lekhan Aur Pratibha dikh rahi h aapki is Post me Jai Hind Vandematram

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  2. बहुत अच्छा लिखा है भाई

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  3. वाह...बहुत ही सचोट और छटादार लिखाई है ।

    वन्दे मातरम् ।

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  4. bahut bahut achcha hai , bahut dard hai

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  5. ''अच्छे को अच्छा कहें तो काको कहें खराब,लिखा आपने बन गईं सुंदर सी मेहराब,सुंदर सी मेहराब गज़ब की है नक्कासी,कुछ देती हैं इस समाज को एक धक्का सी''-- रचनाओं के साथ बंधु जज़्बा अतुलनीय है,प्रभु-प्रदत्त-प्रतिभा-जय हो,,-राज

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