कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग एकविंशतिः (XXI)}
21. हवा कैसे न एहतराम करे उस चराग का।
जो बारिश में भी जलने का हुनर रखता है।।
1 . यूँ ही नहीं आये वो जनाज़े में मेरे।
एक आखरी कील ताबूत कि शायद लोग भूल गए थे।।
2 . किसी को अपना बनाने की चाहत जब हो जाये हद से ज्यादा,
एक पल के लिए फिर किसी का होके देखो।
पाना जूनून हो सकता है पल दो पल के लिए,
होना इबादत है एक पल के लिए इबादत कर के तो देखो।।
3 . उसकी इस अदा पे क्यों न मर जाये ज़माना।
वो क़त्ल भी करता है तो लहज़ा शरीफाना रखता है।।
4 . बहुत भरोसा कर लिया है शहर ने तुझपे,गर टूटा शहर का भरम।
याद रखना,जो भी मिल जायेगा उस पे भरोसा कर लेंगे फिर शहर वाले।।
5 . तिलस्सम टूट चूका है यहाँ बड़े बड़े आइयारों का।
तूने आंखों के धोखों का हुनर अभी अभी सीखा है।।
6 . अब तो कानून जंगल का भी शहर में नहीं चल पायेगा।
नाशुक्रे शहर में जानवर भरे पेट भी शिकार करते हैं।।
7 . बार बार रख रहा है शर्त मोहब्बत में।
इरादा इश्क का है या जाना है सियासत में।।
8 . अट्हास ने कभी कोई तीर न मारा,कातिल हुई हर बार मुस्कान ज़माने में।
खिलखिलाती हंसी बहारे लाती हैं,किल्कारिओं ने दी है ज़िंदगी को पहचान ज़माने में।।
9 . मै चिल्ला चिल्ला के लगाता रहता हूँ इलज़ाम,वो ख़ामोशी से सुनता रहता है।
आँखों का प्यार कम नहीं होता उसकी,इस तरह भी कई बार हारा हूँ मैं।।
10. उसके हांथों के ताकत तेरी समझ से बाहर है अंदर झांक क्या कर लिया तूने।
वो उठाता है दुआओं कि खातिर,हांथो को कासा बना लिया तूने।।
11. वो हर बार मुझको नया नाम दे देता है।
या तो भूलने कि है आदत उसको,या मुझसे कुछ ज्यादा ही प्यार करता है।।
12. इनदिनों बारिश लिए नमक देश का गिरने लगी है।
पीतल जितना चमकना था चमक लिया,बाहर न निकल,रंग काला हो जायेगा।।
13. ताकत तो आसमान को धरती पे खींच के गिराने की रखता हूँ मैं।
पर जब से तू आसमान पे जा बैठा है कुछ कमज़ोर सा हो गया हूँ मैं।।
14. लालची दिमाग का ही तो सारा खेल है,वरना।
एक पैर कब्र में हो तो दूसरा केले के छिलके पे कोई नहीं रखता।।
15. क्यूंकि यहाँ इंसानी दिलोदिमाग लोहा हो गया।
झूठ का चुम्बक लगाये सियासतदां गली गली फिरने लगा।।
16. ज़ेहन कि चालाकिओं,दिमाग कि साज़िशों को इत्तेफ़ाक़ का नाम न दो।
महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं तेरा मुझसे जुदा हो जाना।।
17. फ़कीर जब भी इलज़ाम लगाये,ज़ेहन में अपने झांक लेना।
सियासत कि हवा कुछ तेज है,चलने से पहले रुख हवा का भांप लेना।।
18. "स्वागत"से "कुत्तों से सावधान" का सफ़र तय करते करते।
इंसानियत खो गई गाव छोड़ शहर,रोटी छोड़ बोटी के लिए मरते मरते।।
19. सदियां बीत गई पुकारते हमको,तुम तो वक्त से हुए जाते हो।
दूर रह के देखते हो बेबसी मेरी,एक पल को भी पलट के नहीं आते हो।।
20. बड़े मासूम हैं ये पंछी,खुद कि मौत का सामान बनाने लगते हैं।
जब भी घेरता है बादल सूरज को,पंखों से बादल हटाने लगते हैं।।
धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी
waah! bahut khub. :)
ReplyDeleteमन मोह लिया तूने ओ जादूगर........शब्दों के मायाजाल में हम तो उलझ कर रह गए भाई
ReplyDeleteएक एक पंक्ति में ऐसी जादूगरी समाई है के बस अगली पंक्ति को पढने को मन व्याकुल हो उठता है.मन प्रसन्न हो उठा है.
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