Wednesday, September 12, 2012

ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था ......


ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था ......  
" अरुण कुमार तिवारी "




ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था,
मैं उस कारवां में अकेला ही खड़ा था /
बहुत लोग आये बहुत साथ देने ,
मेरे ही मुकददर में कोई साथ न था //

ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था ......

हर एक आंसू बोला ,हर एक आह बोली ,
हर एक सांस की डोर सांसों ने तोली /
हर एक दर्द मुझसे ये कह के गया था ,
मेरे ग़म का  साया ही मुझ से बड़ा था //

ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था ......

तू ही पास मेरे तू ही दूर मुझसे ,
तू ही तू बसी है मेरी धडकनों में /
मेरी सांस की डोर तुझ से बसी थी ,
मेरा हर फ़साना तुझ से बना था //

ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था ......

मैं चलता रहा बरसों बे कदम ही ,
मैं कहता रहा खुद से खुद की ही बातें /
मेरे हर तराने में तू ही बसी थी ,
मेरा हर फ़साना तुझ से बना था //

ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था ......

मैं चलते चलते यूं ही रूक गया था ,
मैं रूक रूक के यूं ही चल दिया था /
ज़हन में मेरे हर बार  तू ही बसी थी ,
आइना जो देखा अक्स तेरा बना था //

ना मेरी ज़मी थी ना मेरा आसमा था,
मैं उस कारवां में अकेला ही खड़ा था .....

अरुण कुमार तिवारी


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