Wednesday, October 30, 2013

सुबह दूर सही पर सुबह होगी ज़रूर

सुबह दूर सही पर सुबह होगी ज़रूर

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धार तो तलवार को,काटने हैं इसबार कई धड यारों।
वक्त फैसले का आ रहा है,इस बार रण प्रचंड होगा।।

सनातन धर्म कि शिक्षा है "सच्चाई और अच्छाई कभी बर्बाद नहीं जाती,आज नहीं तो कल लोग उसको पहचानते हैं" पिछले तीन चार दिन से जो हो रहा है वो इसकी सार्थकता सिद्ध करते है, धूर्त नेहरू और उसके परिवार वालों ने 65 सालों से हर उस वीर ,सच्चे धरती माँ के सपूत को नकार दिया जो उन कि राह का रोड़ा था।फिर चाहे वो पटेल हों ,बोस हों,राजेंदर प्रसाद हों,पुरुषोत्तम लाल टंडन हों या लाल बहादुर शाश्त्री हों।

इतिहास में एक और बड़ी शक्ति है आप उसे कुछ समय के लिए दबा तो सकते हैं पर बहुत देर तक छुपा नहीं सकते। हिंदुस्तान में पिछले 15 - 20 सालों से जो हो रहा है शायद वो ये ही दर्शाता है। बड़ी संख्या में लोग मकौले और कम्युनिस्ट इतिहासकारों द्वारा जान बूझ कर पढ़ाये जा रहे झूठे इतिहास को पहचानने लगे हैं,और सच्चे इतिहास कि खोज,अध्यन मनन करने लगे हैं।


नतीजा सामने है छद्दम सेक्युलर वादिओं ,धूर्त मीडिया और ढोंगी राजनेताओं के दिल घबराने लगे हैं,झूंट कि बुनियाद पे बने उनके महल अब ढहने लगे हैं।गिद्धों को अब अपने पर कटने का डर सताने लगा है।इस छटपटाहट में अब वो ऐसी ऐसी हरकत करने लगे हैं कि उनके हमाम के दरवाज़े अब लोगों के सामने धीरे धीरे खुलने लगे हैं।


सरदार पटेल के जनम दिवस दिवस पर उन्हें सादर कोटि कोटि प्रणाम,ये उस लौह पुरुष कि ही शक्ति है की इतने वर्षों के बाद जब उनका जिक्र आया तो लोगों को कांग्रेस और धूर्त नेहरू परिवार का सच एक एक कर बाहर आने लगा है,फिर चाहे वो नेहरू का 55 में और इंदिरा का 71 में खुद को भारत रत्न देना हो, या फिर नेहरू का कश्मीर का अमन चैन बर्बाद करना,चीन का कलेश,इंदिरा का लोकतंत्र का क़त्ल या राजीव का निर्दोष सिखों का क़त्ल  सब पे से धीरे धीरे पर्दा उठने लहगा है।


ये दुर्भाग्य ही है कि इतनी सच्चाईओं के खुलासे के बाद भी लोगों को धूर्त कांग्रेसिओं जयचंद मुलायम,नितीश,मायावती,कम्युनिस्ट,अरविन्द केजरीवाल ,लालू,पासवान इत्यादि का दोगला पन और माँ भारती के प्रति अनादर भाव नहीं दिख पा रहा।


पर मुझे आशा है जिस तरह "सच्चाई और अच्छाई कभी बर्बाद नहीं जाती,आज नहीं तो कल लोग उसको पहचानते हैं" उसी तरह "बुराई  और धूर्तपन ज्यादा देर तक छुप नहीं पायेगा "


जनता जागेगी एक दिन सुबह दूर सही पर सुबह होगी ज़रूर।


सुन्ना नया इतिहास है ,पढ़ना नया इतिहास है 
वक्त आ गया है ,जाग ऐ वीर तू 
थाम ले सच्चाई कि मशाल ,
बनाना तुझे नया इतिहास है।   

धन्यवाद,

अरुण कुमार तिवारी   





          

Wednesday, October 23, 2013

कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग दस(X)}




अरुण कुमार तिवारी 


21 . तेरे आगे चलना मजबूरी है मेरी । 
      जो मैं न चला, तेरे पथ के कांटे कौन हटायेगा।।

1  . उस ने जब भी हाथ बढाया,सर को झुका दिया।
      मै उसकी नीयत पे ऐतबार न करता तो और क्या करता।। 

2  . देने लेने की सार्थकता का मान रख लिया आँखों ने ।
      याचक की झुकी नज़रें देख दाता ने झुका ली आँखें।।

3  . ग़र सच बुरा लगता है तो लग जाये। 
      मै आइना हूँ ,मेरा काम नहीं तस्वीर बनाना।।

4  . तू बार बार मुझको पाने की आरज़ू ना पाल। 
      मेरा तो वजूद ही बना था खुद को खोने के बाद।।

5  .  बुलंदियां छूके आसमानों की न इतरा इतना।
       जिसकी गॊद में बैठ कर सबसे पहले आसमां छुआ,
       वो माँ आज भी तेरा इंतजार करती है।।

6  . बस इतना बतादे मौलवी,जो बकरा कल कटा था। 
      क्या उसकी फ़रियाद नहीं सुनता खुदा तेरा।।

7  . बस यही दिक्कत है इस पढ़े लिखे शहर में । 
      सच की गोली लेते हैं झूंठ के पानी के साथ।।

8  . इस शहर को अपनी सच्चाई का बता कैसे चले यार। 
      हर एक शक्श घूमता है आइना लिए उल्टा यहाँ ।।

9  . आँखों ने जब भी गिराना चाहा,पलकों ने थाम लिया।
      राज़ समुन्दर बीच मोती का अब जानने लगा हूँ।।

10. कुछ सीधी कुछ उलटी माला जप रहे हैं उसके नाम की।
      उसको अब न रोक पाओगे,बड़ी मेहनत से वो सिंघासन का हकदार बना है।।

11. इस कदर भी न मोहब्बत को बदनाम कर। 
      मोहब्बत में सूली पे "चढ़ा" नहीं, दिल में "उतरा" जाता है।।

12. कितनी मासूम है उसकी ज़िम्मेदारियां।
      भूंखी है उसके लिए,जिसकी वजह से लाचार है।।

13.  दबंगों के बलबूते चल रही सिआसत। 
       और कितनी बदरंग होगी सिआसत।।

14. मुसलसल ईमान का सौदा करता रहा ताउम्र जो । 
      आज वो सच्चा मुस्लमान होने का दावा करता है।।

15. नया रिश्ता बनाने से पहले रो लो या हंस लो,मगर दिल खोल के।
      भारी दिल,दिमाग की लालच किसी भी रिश्ते को दूर तलक जाने नहीं देती।।

16. तस्वीरें लगा रहा है गली-गली में,शहर भर में अपनी। 
      जो कहता था "मेरी कोशिश है ये की सूरत बदलनी चाहिए।।

17. कुछ रुलाते हैं उसको,कुछ मज़ाक बना रहे हैं उसको।
      लाल्चे सियासत "आम आदमी" का खूब इस्तमाल करती है।।

18. ये दुनिया है इसे आज नहीं तो कल तू छोड़ेगा ।
      सवाल ये है अतीत की सच्चाई को कब खुद से,खुद को कब भाविष्य से जोड़ेगा।।

19. ये दुनिया आइयारों की हो गई है यारों।
      खूबसूरत आँखों के आंसू पोंछते हैं लाखों,
      खूबसूरत दिल के आंसू कोई नहीं पोंछता है।।

20. हो गर मजबूरी तो कभी कभी झुका जाता है ।
      मगर जितना तुम झुके हो,उतना भी नहीं झुका जाता है ।।


धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी 

Wednesday, October 9, 2013

कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग नौ (IX)}





21. दो हांथों से चार कांधों का ही तो होता है सफ़र। 
      तरीका सफ़र का तय करता है मंज़िल तेरी।।


1 . बहुत बदनाम हूँ,न मुझसे इतनी नजदीकियाँ बड़ा। 
     पह्चानने लगेगे लोग तुझे मेरे ही नाम से ।।

2 . कंधों पे लाश,शरहद पे लाश,गोद में भी लाश है।
     भगवान बस बता दे इतना शहार में लाश है,या ये लाशों का शहर है।।

3 . उँगलीऑं को मुट्ठी बनाने वक्त है,भीड़ को देश बनाने वक्त है।
     वक्त आ गया है सोये ज़ामीर,बहरी सरकार को जगाने का वक्त है।।

4 . जब तेरा हर शब्द शिद्दत से तेरे वजूद की गवाही देगा।
     तेरी शक्शियत फिर किसी पहचान की मोहताज़ न होगी।।

5 . ख़त्म कर दोगे गर सारे प्रतिद्वन्द्वी । 
     चिराग फिर हवा से लड़ने का हुनर किस्से सीखेगा।।

6 . वक्त आ गया है जूतियां मारो मियायोँ के सर पे एक दो।
     टोपियां बहुत सस्ती हो गईं हैं मियायोँ के सर् की आज।।

7 . वक्त आ गया है सीखो हुनर तलवार बाज़ी का। 
     हुनर ताली बजाने का तुम्हे "बीच वालों" की जमात का बना देगा।।

8 . इलज़ाम लगा के कीमत बता रहा था वो हर एक की।
     वही जो खड़ा है बाज़ार में सबसे आगे बिकने को।।

9 . आँखों को सिर्फ सुरूर देती है शराब।
     बाकि सबका अपना अपना मिजाज़ होता है।।

10. इतना आसान नही है सांसों का सांसों में घुल्ना।
      इक उमर लग जाती है खुद को मिटाने में ।।

11. कैसे गुनाहगार कहूँ उसको मैं इस जुदाई का। 
      मेरी नज़र उसकी कमिओं पे कभी गई ही नहीं।। 

12. छोड़ दो अकेला चाँद को आज,बेबसी के आँसू रो रहा है वो।
      कल एक बूढ़ा उसीकी बाँहों में दुनिया छोड़ गया था यारों।। 

13. चाह कर भी आइना न तोड़ पाया यारों । 
      अपनी बेबसी हज़ार टुकड़ों में कैसे देखता यारों ।। 

14. मेरे ही शहर में कोई पहचानता नहीं मुझको । 
      ये बात और है के सभी झुक के आदाब करते हैं ।।

15. मार दी गई कोख में,घूम रहे है वहसी सियार बाज़ारों में, 
      कहाँ से लाओगे बेटियाँ पूजन के वास्ते,
      तरस जाओगे एक मासूम सी छुवन के वास्ते।।

16. दर्द वो नहीं जो हमने कहा और आपने सुन लिया। 
      दर्द तो वो जो हम न कह पाए और आप जान गए ।।

17. सितारों को छूने की चाहत मेरी,
      पर जमीं को भी तो छोड सकता नहीं।
      तोड़ सकता हूँ समाज के सारे बंधन,
      पर अपनों के दिलों को तोड़ सकता नहीं।।

18. एक दोस्त ने हक दोस्ती का क्या अदा कर दिया।
      साथ बैठा रहा महफ़िल से तनहा कर दिया।।

19. कोई तो चला जायेगा शहर से।
      या तो जिस्म मेरा या आरज़ू तेरी।।

20. बारी बारी से रूलाने तुझे यै जिंदगी,
      दर्द ,यादें,जज़्बात और एहसास आयेंगे।
      तू किसीका दामन बकड़ के न बैठना कभी,
      इनका तो जब जी चाहेगा चले आयेंगे।।

धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी