Tuesday, November 5, 2013

कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग एकादश(XI)}

अरुण कुमार तिवारी 




21 . सच बोलता है वो,करके पीठ सच कि ओर।
       और ये भी चाहता है,भरोसा करुँ उस पे मैं।।

1  . सियासत भी अजीब वहशी खेल है यारों। 
      किसी को बदज़ुबां कर देती है, किसी को बेज़ुबां।।

2  . बेवजह धर्म को बदनाम न कर,धर्म नहीं डुबोता सियासत को।
      किसीकी हटधर्मी डुबाती है,किसीकी बेधर्मी डुबाती है।।

3  . मौत तो मौत,इक दिन जिंदगी भी छोड़ देगी जिस्म को।
      खूबसूरती अंदर कि दोनों जहाँ में तेरे ढिकाने का पता बताती है।।

4  . तू चाह के भी समझा उसे नहीं पायेगा।
      तू दिल से बोलता है,वो दिमाग से सुनता है बातें।।

5  . बहुत अलग है दुनिया तेरी दुनिया से मेरी।
      एक मेरी दुनिया है जिसमे तू ही तू है,एक तेरी है जिसमे तू ही तू है।।

6  . सच है के आँखों में आंसू लेके ज़िंदगी नहीं चलती।
      पर आँखों का पानी मर जाये तो भी तो ज़िंदगी बेमानी हो जायेगी।।

7  . कहने से पहले समझ जाती है वो सब बातें।
      उस्से मोहब्बत नहीं करता तो और क्या करता।।

8  . क्या वक्त आ गया है,आस्तीन के सांप बताने लगे हैं हमें।
      वफ़ा कैसे निभाई और बेवफाई क्या होती है यारों।।

9  . शहर यूं ही खामोश नहीं हो गया है यारों।
      जख्म बहुत गहरा दिया है हुक्मरानों ने इसको।।

10 . जिन्दगी मिलती है एक बार,मुसाफिर पडाव को मंजिल न बना।
       बेख़ौफ़ ले जा नैया समुन्दर में,डर के नैया का घर साहिल न बना।।

11 . हज़ारों फ़रिश्ते लड़ रहे है चूमने को उँगलियाँ उसकी।
       वो भूंखी बच्ची,बीमार माँ को अपनी रोटी खिलाके फिर काम पे आई है।।

12 . पंडित न धुत्कार उसको,उसके छूने से बढ़ जायेगी रौनक तेरे मंदिर कि।
       माँ कि रात कि एक रोटी के लिए वो दिन भर फूल चुनती है।।

13 . सफ़र खुद दिखा देगा अपने परायों का चेहरा।
       किसी अपने चेहरे के इंतज़ार में ज़िंदगी बर्बाद न कर।।

14 . उन्हें गुरुर है कि वो काटने का हुनर रखते हैं।
       वो जानते ही नहीं हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं।।

15 . नाखुदा कुछ इस तरह लड़ता रहा उम्र भर लहरों से।
       कि जब वो समुन्दर में नहीं आता लहरें उदास होती हैं।।

16 . नैया तू पतवार भी तू है,मुसाफिर तू नाखुदा भी तू है।
       थाम के चल सच्चाई कि डगर,इबादत तू खुदा भी तू है।।

17 . वतन के नौजवां कभी शिद्दत से देखो आसमां कि तरफ। 
       आज़ाद भगत बोस तुम्हारी बुज़दिली पे रोते हैं।।

18 . सुन्ना नया इतिहास है ,पढ़ना नया इतिहास है,वक्त आ गया है ,जाग ऐ वीर तू ।
       थाम ले सच्चाई कि मशाल ,बनाना तुझे नया इतिहास है।।

19 . धार दो तलवार को,काटने हैं इसबार कई धड यारों।
       वक्त फैसले का आ रहा है,इस बार रण प्रचंड होगा।।

20 . टोपीओं में कुछ तो खाश धागा लगा है यारों।
       जो भी पहनता है गद्दार-ए-वतन हो जाता है।।

धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी 


2 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रयास है..जारी रखे लिखना!

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  2. Exceptional work Arunji. Keep it up. :)

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