Wednesday, December 4, 2013

कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग द्वादश(XII)}

कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग द्वादश(XII)}






21. थक जाती हैं लिख लिख के सच्चाई उँगलियाँ मेरी।
      फाड़ के इतने कागज़, हाथ उसका भी तो दुखता होगा यारों ।।

1  . जिस दिन मुझसे प्यार करोगे,उस दिन मुझसे हो जाओगे।
      आदत काटों कि फिर पड़ जायेगी,फिर काँटों पर ही सो जाओगे।।

2  . रात तुझको दुआ देते गुज़ार देता है। 
      तू जिसको दिनभर बद दुआ देता है नाशुक्रे।।

3  . इतना जान ले नाशुक्रे परदेशी,दीवार पे नन्हे हांथों से जो लकीर तूने कभी खींची थी।
      बूढ़े माँ बाप उसीके सहारे ज़िंदगी काट रहे हैं।।

4  .  ये उसके किरदार कि ही सच्चाई का नतीज़ा था। 
       दरवाज़े को उसके लोगों ने दर बना डाला।।

5  . बीच मझधार में,पतवार नहीं है तो न सही।
      निसछल विस्वास से भी नैया पार लगते हमने देखी है।।

6  . बनते गए रिश्ते,बिगड़ते गए रिश्ते।
      वक्त का सब खेल है,
      सोच छोटी हुई छोटे दायरे में सिमटते गए रिश्ते।।

7  . कोई समझाओ इस एहसान फरामोश को।
      अपनी पे आ जायें तो रुख आंधिओं का भी मोड़ देते हैं हमलोग।।

8  . अगर तुम्हारी बात को आधार है सत्य का,तो फांसी लगा दो मुझको।
      यूँ इलज़ाम लगाना और भाग जाना नहीं होता अच्छा।।

9  . सिर्फ सर पे ताज देख कर सर झुकाने वालों।
      बेताज ही अक्सर होते हैं दुनिया के रहनुमा ज़माने में।। 

10. आँख कि शर्म बहुत ज़रूरी है इस शहर में यारों।
      ये शहरे हिन्दोस्तान है,जबां से कभी कभी,नज़रों से अक्सर आदाब पढता है।।

11. बदमाशों-गुनहगारों के नाम "शरीफ़" होने लगे। 
      जनाज़ा-ए शराफत धूम से निकालने कि तैयारी है यारों।।

12. सिहरन तो होनी ही थी उसकी बातों से।
      वो सच बोलता है आँखों में आँखे डाल के।।

13. रुख हवाओं का बता देती है पहली पुरवाई ही।
      फसल किसान बहुत सोच समझ के बोता है।।

14. बिन परों के मासूम परिंदे निकले हैं सफ़र पे।
      लोमडिओं से इस शहर को आज बचा लो यारों।।

15. जानता हूँ बाज़ार सियासत का बहुत जल्द गरम होगा।
      आम चीज़े "आप" कुछ खास दामों पे बेचते नज़र आयेंगे।।

16. आम अब खास हो रहे हैं,ये सियासत है दोस्तों।
      रंजिस नहीं ये दिल का दर्द है,संभल के ऐतबार करना यारों।।

17. सारी आदकारियां करता है वो हुक्मरानो कि।
      और फ़कीर होने का दावा भी करता है।।

18. अब तो बंद कर यहाँ आना मौलवी,मेरा सब्र्र अब जाता है।
      तू जब भी मस्ज़िद मे आता है खुदा न जाने कहाँ चला जाता है।।

19. बचा के लाया हूँ खुदा को मौलवी के हांथों से मस्ज़िद से।
      अब मैं काफिर हूँ या खुदा है काफिर फैसला नमाज़ी को करने दो यारों।।

20. मैं काफिर हूँ ,खुदा मुझ से सीधे बात करता है।
      कल बता रहा था वो मुझको,ऐ नमाज़ी वो तुझसे बहुत डरता है।।



धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी 


2 comments:

  1. maa kasam lekhni mein sara dard or bhavnayein ek saath samahit karke kagaj par utaar dete ho bhai.. maza aa gaya.

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  2. वाह वाह बहुत सुन्दर रचनाये हैं ! भविष्य में आपका बहुत नाम हो ऐसी कामनाएं हैं , बुरा न माने तो इनका अलग अलग उपयोग ट्विटर में करना चाहूँगा . धन्यवाद शेअर करने के लिए !!

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