Wednesday, January 1, 2014

कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग चतुर्दस (XIV)}



कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग चतुर्दस (XIV)}









२१. इलज़ाम जरूर लगाएगा जमाना उसपे बेरुखी का।
      पर कैसे मनाए वो साल नया,जब भूंख ग़ुरबत लाचारी दरवाज़े पे बैठी है उसके आज भी।।

१ .  दीपक समझा रहा था सूरज को, न कर गुमान अपनी रौशनी पर।
     सारी रात लड़ता हूँ अँधेरे में सर्द हवाओं से मैं पथिक के लिए।।

२ . सीखा है मैंने उन से मुश्किलों में चलने का हुनर।
     जब भी आये मुश्किलें बस चलते रहो,चलते रहो,चलते रहो,चलते रहो।।

३ . क्या फायदा होगा आज थाम कर हाथ खुदा का।
     खुदा आज सफ़र पे निकला है थामे नाखुदा का हाथ।। 

४ . फिर तिलमिला के चला गया खुदा मस्ज़िद से न जाने किस तरफ।
      शायद मौलवी पढ़ा रहा था मोमिन को कुरान ये पाक कि आयतें।। 

५ . बाद में सिखाना मुझ इंसानियत का तकाज़ा।
      पहले छोड़ दो उस मेमने को जो तुम्हारी दरांत के नीचे है मोमिनो।।

६ . तू चाह कर भी दर्द उसका नही समझ पाता।
     तू उसके शब्दों में ढूंढ रहा था,वो आँखों से बयां कर रहा था दर्द अपना।। 

७ . कुछ मजबूरीआं होती हैं कुछ फ़साने होते हैं। 
      ज़िंदगी जीने के सबके अपने अपने बहाने होते हैं।।

८ . उसे वास्तव में ही आँसू बहाने का हुनर नहीं आता है।
     दर्द देख कर रो देता है,फ़ायदा देख कर रोना नहीं आता उसको।। 

९ . तेरा मेरा मेल हो तो कैसे हो,भार नाव का कम करने को।
     मैं दरिया में कूदने कि सोच रहा था जब तू खंजर लिए ख्याल कुछ बुन रहा था।। 

१०. शामेगम है ये इतना जान लो यारों।
      ख़तम होगी मेरी रुस्वाई पे या फिर नाम पे उसके।।

११. पहचानने के लिए मुझको न दो अपनी आँखों को ज़ेहमत।
      जज़्बात हूँ मुझको आप अपने दिल से टटोलिये।।

१२. क्या कहा,दिल में उतर गई मेरी बातें।
      जनाब दिलसे कही थी बात,इनका ठिकाना भला और कहाँ होता।।

१३. मुझ को अपना चूका था वो मेरी हर कमी के साथ।
      मैं ढूंढ रहा था जब अपने अंदर कि कुछ अच्छाइयां उससे बताने को।।

१४. चमक बढ़ जायेगी,धार और भी निखर आएगी तलवार पर। 
      किसी मजबूर कि मदत के वास्ते शिददत से उठाकर देखो।।

१५. बिकने ही तो आया था वो सियासत के बाजाऱ में।
      कीमत सिक्को ने तय करनी थी,सिक्कों ने ही तय कर दी उसकी बोली।।

१६. लेकर हुजूम,दिखाकर कीचड वो "आम" से खास हो गया।
     बाहर निकलो सरफिरों तुम्हे कीचड मिटाना है,हौंसलों का उसमे कमल खिलाना है।।

१७. उसको आती है आईआरी झूठ के महल बनाने कि।
       हमने सीख लिया हुनर किलों को ढहाने का।।

१८. खरीदने बेचने का हुनर उसको खूब आता है।
      बेच कर फकीरी अपनी वो सिंघासन खरीद लाया है।।

१९. कह रहा हूँ सुन लो ध्यान से,या तो हिन्दू हो जाओ या फिर जाओ खुदा कि पनाह में।
      ये "बीच वालों" सा रवैया जंग में अच्छा नहीं होता।।

२०. खुश हो जा तू गिन के हाँथ,जो तालियां बजा रहे हैं ताजपोशी पे तेरी।
      मैं उन सरों कि तलाश में हूँ जो कटने को तैयार हैं अपने इस वतन के लिए।।

धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी 


4 comments:

  1. i posted two on twitter ,, very very good ,,,

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  2. वाह! बहुत खूब।

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  3. बहुत ही उम्दा..सराहनीय|

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  4. वाह वाह क्या बात है..

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