Thursday, January 9, 2014

कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग पंचदशं (XV)}



कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग पंचदशं (XV)}





२१. अजीब शहर है ये घूमते हैं शरीफ सारे उतारे कपडे।
     और एक मजबूर तवायफ है जिसके सर से कभी दुपटटा नहीं हटता।।

१ . ये बात और है सियासतदां के तुझको खबर नहीं।
     वरना इस शहर में आंसू भी बहुत हैं,आहें भी बहुत हैं।।

२ . जब भी लड़ो घर में सब्ज़ी में मसाले "कम है" की खातिर,ध्यान रहे ।
      कहीं एक माँ भी होगी जो नमक-रोटी से बच्चा पालती होगी।।

३ . फिर आस्तीन उठा कर,मुश्क दिखाने की आदत चली गई।
      आँखों में लाली लिए रात भर जागने की,मजबूर माँ को इंटे उठाते देखा था।।  

४ . जुड़ेगा जब भी नाम मेरा तेरे नाम से।
      शहर में कोई तो बदनाम हो जायेगा।। 

५ . दावा है सर्द हवाएं छूके तुझ को गर्माहट दे देंगी।
      लाचार बूढ़े गरीब को अपनी चादर उढ़ा के तो देखो।। 

६ . जब भी बंद होने लगती हैं, उसके दिल कि धड़कन।
     कंधे पे बैठी मजबूरी,बूढ़े बाप का जिस्म चला देतीं हैं।।

७ . मत ढूंड इस शहर में अपने जीने कि वजह।
      बस इतना जान लो तुम भी हो इस शहर के जीने कि वजह।।  

८ . टुकड़ों में बंट चुकी है ज़िंदगी,टुकड़ों में कट रही है ज़िंदगी।
     वक्त कुछ ऐसी करवट बदल चूका है,टुकड़ो में ज़िंदा है टुकड़ो ही में मर रही है ज़िंदगी।। 

९ . दुम दबाये कुत्ते बहुत भौंकने लगे हैं इन दिनों।
     लगता है शेर ने दस्तक दे दी है शहर में।। 

१०. तुम्हारे बदलाव को आधार स्वप्न का है,मेरे बदलाव को आधार सत्य का है।
      तुम्हारे स्वप्न में व्यक्तिविशेष मेरे वजूद में देश रहता है।।

११. जिस की बुनियाद में ही हो अँधेरा मिटाने की आदत। 
     अँधेरा कितना भी गहरा हो उसे मिटा नहि सकता।।

१२. कोई मोहरे कि तलाश में था,किसीको थी मोहरा बनने कि जुस्तज़ू।
      दोनों सियासत कर रहे है अपनी अपनी,शहर खेल के मैदान सा लगने लगा है अब तो।।

१३. आदत हो गई है थूकने कि आसमान पे इनकी।
      ग़ुरूर इतना अपनी जगह से हटते भी नहीं।।

१४. इस धूम को ढोल ताशे लिए हुज़ूम को बारात न समझो।
      ये हिंदुस्तान है,मैय्यतें भी अक्सर सजाके निकाली जातीं देखि हैं हमने।।

१५. झूठा हूँ तो तुम ही समझा दो मुझको।
      मैंने झूठा कहा था क्यूंकि,याद थी कुछ कस्मे कुछ वादे तेरे।।

१६. पहले ही तय कर चुके हैं भागने कि गली सब।
     गीदड़ जितने इकठ्ठा हो रहे हैं,करने शिकार शेर का।।

१७. जब भी खोदी जाएँगी,मीनारे गुलामी की हिंदुस्तान में।
     लुटी कुछ लाज मिलेगी,कटे कुछ राम के टुकड़े मिलेंगे।।

१८. तीर बन तलवार बन और कभी तू ढाल बन। 
     युद्ध है ये धर्म का बन के आहूति हर बार जल।।

१९. इस धर्मक्षेत्र में कुरुक्षेत्र में जायज़ हैं सब वार।
    उठो धरा के वीर सपूतों,चूनो प्रतिध्वंधि चुन लो अपने हथियार,विजय निश्चित हो इस बार।।

२०. मोमिन है तभी तो परेशां है देख के बस एक ही गली।
     मेरे राम ने बताया था हर रास्ता उस तक ही जाता है।। 


धन्यवाद,

अरुण कुमार तिवारी 

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