Friday, February 28, 2014

कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग नवदशः (XIX)}



कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग नवदशः (XIX)}












21. उसके और मेरे शेरों का मुकाबला हो नहीं सकता।
      नज़र उसकि होती है लोगो कि तालिओं पे,मेरी होंठों पे-आँखों पे हर शेर के बाद।।

1 . दर किनारी नहीं कि जाती रिश्तों में इतना जान ले ऐ यार तू।
     रिश्ते किनारों पे रहके नहीं देखे जाते,बीच भंवर में इनकि पहचान होती है।।

2 . तेरे बाद भी कई सरफिरे आयेंगे ज़माने में।
     तेरी तरह उनको भी खुद के खुदा होने का भरम होगा।।

3 . बदल के तो हमने कभी नफरत भी नहीं कि कभी।
     और तुम हम से बदल के मोहब्बत कि बात करते हो।।

4 .  झूठा उजियारा बन अंधियारे को छलते हैं अब लोग।
      कलयुग है इस युग में शायद एसे ही फलते हैं कुछ लोग।।

5 . करिए कुकुर,उजला कुकुर जगह जगह कुकुर ही कुकुर।
     कबीरा गाड़ रहा है खम्भा,आ जायेंगे सारे ही कुकुर।।

6 . लड़ता है भूंखो के लिए,कर के छप्पन भोग।
     वह रे शहर के पढ़े लिखों,देख ली तुम्हारे मसीहा की सोंच।।

7 . सुना है शहर में तेरे आज कल ,थका मुसाफिर नहीं रुकता।
     सुना है अपने इस शहर में,अपनों के अरमान भी जला देते हैं।।

8 . कभी डर कभी लालच के गिरफ्त में आकर,सत्ता के आगे आँख मुंदने वालों।
     जान लो बस इतना,बिल्लिओं के शिकार कबूतर एसे ही बनते हैं।। 

9 . कंधे कंधे पानी था,तब बैठ मेरे कंधे पर तू था चला।
     अब जब घुटने घुटने पानी है,मुझ को धकेल पकड़ उसका हाथ तू भाग चला।।

10. कुल्हाड़ी रख कूदने को दिल करता है।
      कभी कभी भाजपाई बनने को दिल करता है।।

11. बस तलवार उठाने का हुनर सीख ले चिरागे हिंदुस्तान तू।
      देखते हैं फिर कौनसी कोख जयचंदों को जनम देती है।।

12. कोशिश कर ले जितना भी चाहे हाँथ के छाले लकीरे नहीं पढ़ने देंगे।
      दिल से छू के देखना हाथ मेरे,छाले मेरे मंज़िल का पता बता देंगे।।

13. रंग कलम के लहू का चढ़ता नहीं अब वीरों में।
      जब से सम्भाली सत्ता नपुंसकों ने,जंग लग गया तलवार में और तीरों में।।

14. काले पानी में भी रहकर केसरिआ तेज नहीं खोया।
      जब तक न देश आज़ाद हुआ,एक रात चैनकि न कभी वो सोया।।

15. जरूरत एक गिलास पानी कि बीमार माँ को भी थी मगर।
      दूध एक गिलाश था,और बच्चे दोनों भूंखे थे उसके।।

16. मेरी कमियां दुनिया को गिनवाने वाले।
      सीधे सीधे कह देते के अब प्यार नहीं है तुमसे।।

17. सुन्नी लिए तलवार भाग रहा था शिया और अहमदिओं के पीछे।
      मौलवी अज़ान में कह रहा था मोमिन एक होक शिकार करो काफिर का।।

18. आने लगी है दुर्गन्ध काबे वाली उसके हाथो से।
      अपने वंसजों का सर भूल,लगता है किसी से हाँथ मिला के आया है।।

19. रहता कहाँ वो ईश्वर है,उस बूढी दादी से पूंछों।
      जो टपकती छत देख बरसात रोकने के लिए,सिलबट्टे के नीचे झाड़ू रखती है।।

20. बहुत भोला है महादेव मेरा,देखलेना आशीर्वाद देने तेरे पीछे भागा चला आएगा।
      एक बार किसी गरीब को उसके हिस्से का दूध पिला के तो देख।।

धन्यवाद,

अरुण कुमार तिवारी 


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