Thursday, February 6, 2014

कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग सप्तदश (XVII)}


कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग सप्तदश  (XVII)}





21. दुश्मन के लिए इज़ज़त दिल में भर आई।
      जब ज़िंदगी दोस्त का खंज़र पीठ से निकाल कर लाई।।

1 . मंगल पे घर बनाने कि ख्वाइश रखने वालों।
     इल्तज़ा बस इतनी है,पहले धरती पे चलने का सलीका सीख लो।। 

2 . तकलीफ अब कितनी भी बड़ी हो,आंसू नहीं निकलते उसके।
     आंसू सारे ले गई डोली,जिसमे बेटी को विदा किया था उसने।।

3 . उसके चेहरे कि हंसी ने समझा दिया मुझको।
     कोई गहरा दर्द,सीने में लिए महफ़िल में आया है वो।।

4 . तेरी सूरत में रब दिखने लगा है मुझको।
     कातिल मेरे तूने आज काफिर बना दिया मुझको।।

5 . उस रात जो छुआ था तूने। 
     चाँद आज तक मुझ से खफा बैठा है।।

6 . ये शहर इससे ज्यादा सज़ा और क्या पाता।
     इसका कातिल ही इस का हुक्मरां बना बैठा है।। 

7 . घर के सब आईने तोड़ दिए हैं शहर के हुक्मरानो ने।
     सुना है जिसको भी देखते हैं उस पे शक कर बैठते हैं वो।।

8 . मुस्करा के डाल रहा है,शहद तेरी जड़ों में ऐ सजर।
     कमजर्फ सियासतदां तेरा एहसान उतारने पे उतारू है शायद।। 

9 . तेरा मेरा मेल अब शायद नहीं हो पायेगा।
     तू हुनर सीख रहा सर झुकाने का,मै महारत ले रहाहूँ सर कटाने की।।

10. दामन में पिघलने कि गलती कि थी पृथ्वीराज चौहान ने।
      सदियां बीत गई आदाब करते हिंदुस्तान की।।

11. सर्द हवाएं बहा ले गईं है नौटंकीबाज़ के दस्तार को।
      एक मफलर है गालिबन जिसने झूठे बाल बचा रखे है यारों।।

12. किस राह पे चलना,किससे बचना कैसे सम्भलना।
      बूढ़े बाप को गांव छोड़ आये हो,मुस्किल है तुम्हे अब चलना सिखाना।।

13. बहुत मुमकिन है,एक दिन काफिर हो जायेगा हिन्द के मुसलमां तू।
      कभी तो बलात्कारी औरंगजेब का सच तू जान जायेगा।।

14. औकात भी होनी चाहिए सामन की बिकने के काबिल।
      यूँ तो बाज़ार में बिकने को चीज़ें हज़ार होती हैं।।

15. शहर में आज कल एक अजीब सा बोलता सन्नाटा है।
      लगता है हुक्मरां निकला है हाल पूंछने तलवार ले कर।।

16. बेईमान बेईमान के साथ भले ही खड़ा हो भरोसा नहीं करता।
      तभी तो शायद हिंदुस्तान में तीसरा मोर्चा नहीं बनता ।।

17. एहसान फरामोशी इस शहर के खून में है शायद।
      और एक वो है जिसने कभी एहसान जताया ही नही।।

18. शर्मा के एक बार उस ने कह दिया था दीवाना ।
      मै परवाने कि तरह उम्र भर जलता रहा यारों ।।

19. जब कोई नाम इबादत बन जाता है ज़माने में।
      कोई लाख कर ले चतुराई वो नाम नहीं मिटता ज़माने में।।

20. जिस जगह के लिए निकला,वहाँ नही पहुंचा।
      इन दिनों मेरा शेर भी "आप" हुआ जाता है।।  

धन्यवाद,

अरुण कुमार तिवारी 

No comments:

Post a Comment