Saturday, August 31, 2013

क्या पता




ये दौर जिंदगी में फिर आये न आये;
क्या पता।  
ये लम्हा जो है ख़ुशी का फिर आये न आये,
क्या पता।।

आंसूं भी गर बहे तो बहे गैरों के दर्द पर।
मरने के बाद कब्र पर मेरी कोई दो आंसूं बहाए न बहाए 
क्या पता।।

सब को मिल जायें दोनों जहाँ की खुशियां।
मुझको फलक के तारे मिलें न मिलें 
क्या पता।।

तुम बनके सूरज चमकना जहान में।
मेरे नसीब में दिए की भी रौशनी आये न आये 
क्या पता।।

तुम पूरा करके सफ़र पहुँच जाओ अपनी मंज़िल पे।
मेरी टूटी नैया को साहिल मिले न मिले 
क्या पता।।

आज तनहा हूँ तो शायद ये कह पाया हूँ।
दिल में फिर कुछ कहने की आरज़ू आये न आये 
क्या पता।।

दर्द आज गीत बनके निकलना चाहता है जहान में।
अब कंठ मेरा साथ दे न दे 
क्या पता।।

आज जाम नहीं उठा रहा हूँ,तेरी कसम याद है ।
अब कल कोई कसम याद रहे न रहे 
क्या पता।।

तुम ढूंड लेना मुझसे अच्छा साथी कोई ।
मेरी सांसों की डोर अब रहे न रहे  
क्या पता।।

धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी 

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