Friday, August 16, 2013

कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग छः (VI)}



कुछ मुक्तक कुछ शेर {भाग छः (VI)}
अरुण कुमार तिवारी 






25. मौत वही जिसका दुनिया करे अफ़सोस।
      यूँ तो ज़माने में मरते हैं सभी लोग।।

1.  कभी अपनों के लिए कभी गैरों के लिए मरा हूँ मैं।
     दुनिया में दुनिया को इस कदर जिया हूँ मैं।।

2.  ढूँडोगे तो हर बात में राज़ नज़र आएगा।
     चाँद तो चाँद सूरज में भी दाग नज़र आएगा।।

3.  हम तो दिल के उफनते तूफ़ान लिखा करते हैं।
     लोग कहते हैं,आपनी मौत का सामन लिखा करते हैं।।

4.  ज़िन्दगी भर समझते रहे लोग जिन्हें चट्टान,उनके जाने के बाद जाना ये।
     कठोर से कठोर चट्टान के बीच निर्मल जल स्त्रोत निकलते हैं।।

5.  जो करते हैं आज उनकी पूजा,
     तस्वीर भी अपने कमरों में सजाये हैं।
     यही वो लोग थे ज़माने में,
     जिन्ही कभी वक्त भी न था उनसे मिलने का।।

6.  हुस्न तेरा देख के ख्वाब हमारे चल दिए।
     तुझे देख के लोग तो लोग चाँद तारे चल दिए।।

7.  आधी अधूरी सी नज़्म,मगर पूरी सी नज़र आती है।
     तेरी नजदीकियां मुझे अब,दूरी सी नज़र आती हैं।।

8.  कभी रहते थे हम जहाँ,तेरे सीने में वो दिल ही न रहा।
     आनी थी जहाँ बहार,वो गुलशन ही न खिला ।।

9.  चंद आंसू ही तो हैं,बह जाने दो।
     वफ़ा की खातिर,इनका बहना ज़रूरी है।।

10. हवस की गिरफ्त में है हर एक शक्श यहाँ,
      कोई मोहबबत का,कोई शौहरत का।
      कोई बदन का,तो कोई नाम का.
      इनके बीच एक इंसान कहाँ पाओगे।।

11. जिंदगी भर भागते रहे खुशिओं की तलाश में।
      खुशियाँ मिली तो अब जीवन हाँथ से निकला जाता है।।

12. प्यार का इज़हार करना हमें नही आता है।
      यूँ तो प्यार इजहारे वफ़ा होता है।।

13. नफरत इस कदर पाई है हमने।
      के अब नफरत से अब प्यार हुआ जाता है।।

14. सदियों में नहीं लम्हों में जिया करते हैं।
      हम तो हर गम को ख़ुशी से पिया करते हैं।।

15. कभी खुद के कभी गैरों के सितम झेलें हैं।
      हम कल भी तनहा थे,हम आज भी अकेले हैं ।।

16. जिंदगी भर बहाए हमने गैरों के लिए आंसू।
      आज दो आँसूं भी नहीं अपनों के लिए।।

17. वक्त्त नहीं हैं यहाँ सुनने को दस्ताने गम।
      खुशिओं की फिकर यहाँ कौन भला करता है ।।

18. ये बात किसी किताब में लिखी नहीं होगी।
      अंगद ने जब पाँव जमीं पे रखा होगा,धरतीमां से इज़ाज़त मांग ली होगी।।

19. तेरा अंदाज़े बयां दुनिया से जुदा सा है। 
      तू दिखता इन्सान सा है, लगता खुदा सा है।।

20. और कितना गिरेंगे,सियासतदान वतन के।
      लाशें भी गिन रहे हैं,तो टोपी देख के।।

21. अपनों को अपना बनाने में दिल की ज़रुरत है। 
      गैरों को अपनाने में ये काम दिमाग बखूबी करता है।।

22. यही किस्मत है वतन की मेरे,इसको अक्सर जयचंद ही मिलते हैं।
      जब भी वक्त आता है एक साथ मिलके लड़ने का,एक दुसरे का सर ही कलम करते हैं।।

23. हम बेखुदी में भी तेरा नाम नहीं भूले।
      तुम होशो हवास में हमारा नाम भुला बैठे।।

24. किस किस मोड़ पे तनहा करेगी हमें जिंदगी।
      ढूंड रहे हैं आज इस मोड़ पर हम अपने ही साये को।।  


धन्यवाद,
अरुण कुमार तिवारी 

7 comments:

  1. बहुत अच्छी रचनाये है ।
    आप इसी तरह लिखते रहियेगा और हम इसी तरह पढ़ते रहेंगे ।
    धन्यवाद ।

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  2. Excellent Sir. Beautiful and Patriotic :) Well written.

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  3. बहुत खूब ..उम्दा ..

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  4. माशाल्लाह..
    उम्दा शायर को अंगड़ाई लेते देख रहा हूँ..

    शुभकामनाएं।

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  5. नई उमर की नई फसल लहलहाना चाहती है आपकी रचनाओं में खुद को बसाना चाहती है। कुछ बहुत अच्छे शेर हैं कुछ अच्छे हैं आप लिखते रहियेगा और जब लिखें कृपया अवगत करा दें। आपको पढना अच्छा अनुभव रहा। शुभेच्छा ....

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